Facts About Burning Crater On Earth In Hindi || जानिए धरती के सालो से जल...
हमारी पृथ्वी बहुत ही अजूबों से भरी हुई है। ऐसा ही एक अजूबा है “डोर टू हेल” या नरक का दरवाज़ा जो कि तुर्कमेनिस्तान के दरवेज़े गाँव में स्तिथ है। ये असल में एक गड्ढा है जिसमें पिछले 45 सालों से लगातार आग जल रही है। दरवेज़े एक पर्सियन शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ होता है फाटक या दरवाज़ा। इस गाँव में एक 230 फीट चौड़ा क्रेटर खढ्ढा है जिसमे 1971 से अब तक लगातार प्राकर्तिक रूप से आग जल रही है।
जैसा कि हमने आपको बताया कि यह क्रेटर तुर्कमेनिस्तान के दरवेज़े गाँव में स्तिथ है। तुर्कमेनिस्तान का 70 परसेंट एरिया डेजर्ट है। पूरा तुर्कमेनिस्तान पांच राज्यों में बटा है। इसका दूसरा सबसे बड़ा राज्य अहल वेलायत (Ahal Welayat) है जो कि पूरा ही डेजर्ट एरिया है। यहाँ पर पुरे तुर्कमेनिस्तान कि केवल 14 परसेंट आबादी रहती है। पर यह डेजर्ट एरिया प्राकर्तिक संसाधनों (Natural Resources) से परिपूर्ण है। दरवेज़े गाँव भी इसी डेजर्ट एरिया में स्तिथ है।
1971 में पूर्व सोवियत संघ के वैज्ञानिक इस डेजर्ट एरिया में आयल और गैस कि खोज करने के लिए आये उन्होंने दरवेज़े गाँव के पास स्तिथ इस जगह को ड्रिलिंग के लिए चुना। उन्होंने यहाँ सेटअप लगाकर ड्रिलिंग शुरू करी। पर ड्रिलिंग शरू करने के कुछ देर बाद यह जगह ढह (Collapsed) ho गयी और यहाँ पर 230 फीट चौड़ा और 65 फीट गहरा क्रेटर बन गया। इस दुर्घटना में कोई जन हानि तो नहीं हुई पर इस क्रेटर से बहुत ज्यादा मात्रा में मीथेन गैस निकलने लगी। मीथेन गैस एक ग्रीनहाउस गैस है जिसका कि वातावरण और मानव दोनों पर प्रतिकूल असर होता है। इसिलए इस मीथेन गैस को बाहर निकलने से रोकना जरूरी था।
इसके दो विकल्प थे या तो इस क्रेटर को बंद किया जाय या फिर इस मीथेन गैस को जला दिया जाए। पहला तरीका बेहद ही खर्चीला और समय लगने वाला था। इसलिए वैज्ञानिकों ने दूसरा तरीका अपनाया और इस क्रेटर में आग लगा दी। उनका सोचना था कि कुछ एक दिन में सारी मीथेन गैस जल जाएंगी और आग स्वतः ही बुझ जाएंगी। पर वैज्ञानिकों का यह अंदाजा गलत निकला तब कि लगी आग आज 42 साल बाद भी जल रही है इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि उस जगह मीथेन का कितना विशाल भण्डार है।
“डोर टू हेल”, तुर्कमेनिस्तान का एक प्रमुख टूरिस्ट आकर्षण बन चूका है। इस जगह कि पूरी भव्यता रात के समय ही दिखती है जब कई किलोमीटर दूर से भी इस जगह के ऊपर सुनहरी आभा नज़र आती है, दिन में सूरज कि रोशनी में यह दूर से एक आम क्रेटर ही नज़र आता है।
सन 2010 में तुर्कमेनिस्तान के नेता Berdimuhamedow ने इस क्रेटर को बंद करने के आदेश दिए ताकि इस क्षेत्र में तेल और गैस का उत्खनन किया जा सके पर शायद वितीय समस्या के कारण इसे अब तक अमल में नहीं लाया जा सका है और “डोर टू हेल” लगातार जल रहा है।
कनाडा के रहने वाले जॉर्ज कोरोनिस वो पहले शख्स हैं, जो काराकुम रेगिस्तान में जल रहे इस गड्ढे में उतर चुके हैं। जॉर्ज ने इस क्रेटर में अपनी यात्रा की तस्वीरें हाल ही में जारी की थीं। उन्होंने कहा था कि एक हजार सेल्सियस तापमान पर जल रहे 100 फीट गहरे क्रेटर की सतह में जाने का अनुभव लाजवाब रहा।
वक़्त के साथ-साथ ये जगह अब टूरिस्ट स्पॉट बन चुकी है।
aap ko ye बता दें कि ऐसा ही आग से दहकता एक गड्ढा चीन के पहाड़ी इलाके में मिला है। शिनजियांग प्रांत के उरूमकी के पहाड़ी इलाके में कुछ हफ्ते पहले ये गड्ढा देखा गया। स्थानीय मीडिया के मुताबिक, दो मीटर की दूरी से इस गड्ढे का तापमान 792 डिग्री सेल्सियस मापा गया है। तेज गर्मी के चलते एक्सपर्ट इसके बहुत करीब नहीं जा सके और इसकी गहराई का अंदाजा नहीं लगाया जा सका।
वीडियो फुटेज और तस्वीरों में जमीन में बना ये आग का गोला 3 फीट चौड़ा नजर आ रहा है। इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुट रही है। शिनजियांग मेटियन जियोलॉजिकल ब्यूरो के एक्सपर्ट का मानना है कि इस गड्ढे में जमीन के नीचे कोयले की परतों के चलते खुद ब खुद लगी होगी, जिसकी वजह से जमीन की ऊपरी परत ढह गई। वहीं शिनजियांग मेटियन फायर इंजीनियरिंग ब्यूरो के चेन लॉन्ग ने बताया कि 1970 में इस इलाके में दर्जनों छोटी कोयले की खदानें हुआ करती थीं।
aisa hi ek aur 'नर्क का द्वार' hai jo रूस के कोला प्रायद्वीप में स्थित है। बताते हैं कि ये दुनिया में मौजूद सबसे गहरा बोरहोल है। इसकी तस्वीर देखकर ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है। ये इतना भयानक नजर आता है कि मजबूत दिल वाले भी इसके नजदीक जाने से घबरा जाते हैं।
iflscience.com की रिपोर्ट के मुताबिक इस नर्क के द्वार को 'कोला सुपरडीप बोरहोल' नाम से जाना जाता है। अमेरिकी वैज्ञानिकों को चुनौती देने के लिए 1970 में रूसी वैज्ञानिकों ने इस होल को खोदना शुरू किया था। इसकी खुदाई लगभग 19 साल तक की गई। उस समय वैज्ञानिक 12 किमी की गहराई तक पहुंच चुके थे लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें खुदाई का काम रोकना पड़ गया। आखिर क्या हुआ था ऐसा ?
रिसर्च बताती है कि रूसी वैज्ञानिक जमीन के जितना नीचे तक खुदाई करते जा रहे थे वैसे-वैसे उनकी राह में बाधाएं बढ़ती जा रही थी। फिर एक समय ऐसा आया कि खुदाई मशीन का तापमान तेजी से बढ़ने लगा। जब वे 12262 मीटर की गहराई पर पहुंचे तो मशीन ठप पड़ गई। आपको यकीन नहीं होगा उस वक्त का तापमान 180 डिग्री सेलसियस था। इसे जानकर वैज्ञानिक चौंक पड़े और तत्काल काम को रुकवा दिया गया। तब साइंटिस्ट्स ने इस होल का नाम Door to Hell यानी 'नर्क का द्वार' रख दिया।
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